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चना【GRAM】
वानस्पतिक नाम- साइसर एराइटिनम & काबूलियम
कुल- लेग्यूमिनेसी
कुल- लेग्यूमिनेसी
उत्पत्ति(Origin)- दक्षिणी-पश्चिमी एशिया
2n – 14,16
2n – 14,16
Importance–
इसका उपयोग बेसन, दाल, दुधारू पशुओं को खिलाने में किया जाता है।
इसका उपयोग बेसन, दाल, दुधारू पशुओं को खिलाने में किया जाता है।
Climate–
चने की फसल के लिए ठंडा व शुष्क मौसम उपयुक्त मारा जाता है इसकी खेती के लिए ढेले वाली मृदा उपयुक्त मानी जाती है ।
चने की फसल के लिए ठंडा व शुष्क मौसम उपयुक्त मारा जाता है इसकी खेती के लिए ढेले वाली मृदा उपयुक्त मानी जाती है ।
Varieties–
सी 235, आर.एस 11 वरदान, विजय, प्रताप चना 1, प्रगति, बी.जी 209, C-235 etc
सी 235, आर.एस 11 वरदान, विजय, प्रताप चना 1, प्रगति, बी.जी 209, C-235 etc
Seed Rate–
चने की सामान्य बीजदर 80-100kg/h मानी जाती है।
चने की सामान्य बीजदर 80-100kg/h मानी जाती है।
Insects–
1) कट वर्म– यह कीट नर्सरी अवस्था के पौधे को रात के समय मृदा की सतह से काटती है।
2)फली छेदक- यह कीट पहले पत्तियां खाता है और बाद में फली में छेद करके दाना को खाता है।
1) कट वर्म– यह कीट नर्सरी अवस्था के पौधे को रात के समय मृदा की सतह से काटती है।
2)फली छेदक- यह कीट पहले पत्तियां खाता है और बाद में फली में छेद करके दाना को खाता है।
DISEASE–
1) wilt– यह रोग कवक द्वारा फैलता है।इसके बचाव के लिए बीजो को बावस्टीन से उपचारित करके बोना चाहिय।
2)झुलसा रोग– यह रोग पश्चिमी भारत मे कवक द्वारा फैलता है। इससे बचने के लिए रोग रोधी किस्म को बोना चाहिए।( गौरव, C-235)
1) wilt– यह रोग कवक द्वारा फैलता है।इसके बचाव के लिए बीजो को बावस्टीन से उपचारित करके बोना चाहिय।
2)झुलसा रोग– यह रोग पश्चिमी भारत मे कवक द्वारा फैलता है। इससे बचने के लिए रोग रोधी किस्म को बोना चाहिए।( गौरव, C-235)
Yield– चने की उपज सिंचित क्षेत्रों के लिए लगभग 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व असिंचित जगह में 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो
जाती है।
जाती है।